बुखार (ज्वर) शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा दी गई एक चेतावनी होती है कि शरीर के अंदर कुछ असामान्य हो रहा है। आयुर्वेद के अनुसार, बुखार (ज्वर) शरीर में दोषों के असंतुलन से उत्पन्न होता है, विशेषकर पित्त, कफ और वात दोषों के विकार से। आयुर्वेदिक ग्रंथों में बुखार को “रोगों का राजा” कहा गया है क्योंकि यह कई बीमारियों का कारण और लक्षण दोनों हो सकता है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि बुखार क्या है, यह कैसे होता है, आयुर्वेद में इसके क्या कारण बताए गए हैं, इसके लक्षण क्या हैं, और इसके उपचार के आयुर्वेदिक उपाय कौन-कौन से हैं।
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🔹 बुखार (ज्वर) क्या है?
बुखार तब होता है जब शरीर का तापमान सामान्य से ऊपर चला जाता है। सामान्य शरीर का तापमान 98.6°F (37°C) होता है। जब यह 100.4°F (38°C) से अधिक हो जाए, तो इसे बुखार माना जाता है।
आयुर्वेद में ज्वर की परिभाषा:
आयुर्वेद में, "ज्वर" को एक ऐसा रोग माना गया है जो त्रिदोषों (वात, पित्त, कफ) के असंतुलन से उत्पन्न होता है। यह एक प्रधान व्याधि है जो शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है।
🔹 बुखार के प्रकार (आयुर्वेदानुसार):
1. वातज ज्वर — वात दोष की वृद्धि से उत्पन्न
2. पित्तज ज्वर — पित्त दोष के असंतुलन से उत्पन्न
3. कफज ज्वर — कफ दोष की अधिकता से उत्पन्न
4. सन्निपातिक ज्वर — तीनों दोषों का मिश्रण
5. आगंतुज ज्वर — बाहरी कारणों जैसे जीवाणु, विषाणु या चोट आदि से
6. जागतिक ज्वर — मौसम परिवर्तन या गलत जीवनशैली के कारण
🔹 बुखार के लक्षण:
शरीर में कंपकंपी
सिरदर्द
पसीना आना
बदन दर्द
अत्यधिक थकावट
मिचली या उल्टी
भूख की कमी
अनिद्रा
शरीर का गरम होना
🔹 आयुर्वेदिक कारण:
त्रिदोषों का असंतुलन
अपाचित आहार
मानसिक तनाव
मौसम में अचानक परिवर्तन
दूषित जल या भोजन
रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी
🔹 आयुर्वेदिक उपचार:
1. त्रिकटु चूर्ण:
त्रिकटु (सोंठ, मरीच, पिप्पली) बुखार में अति लाभकारी है। यह पाचन को ठीक करता है, शरीर से आम (toxins) निकालता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करता है।
सेवन विधि:
एक चम्मच त्रिकटु चूर्ण को शहद के साथ दिन में दो बार लें।
2. गिलोय (गुडूची):
गिलोय एक शक्तिशाली प्रतिरोधक और रोग नाशक औषधि है। यह पित्त, कफ और वात तीनों दोषों को संतुलित करती है।
सेवन विधि:
गिलोय की ताज़ी बेल को काटकर उसका रस निकालें और 2 चम्मच रस सुबह-शाम लें।
वैकल्पिक:
गिलोय की गोली (500 mg) दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लें।
3. तुलसी (Holy Basil):
तुलसी में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुण होते हैं। यह वायरस को नष्ट करने में मदद करती है।
सेवन विधि:
तुलसी की 10-15 पत्तियों को पानी में उबालकर चाय की तरह सेवन करें। इसमें अदरक और काली मिर्च डाल सकते हैं।
4. सुधा चूर्ण या सुदर्शन चूर्ण:
यह चूर्ण पाचन को ठीक करता है और बुखार के कारण बने विष को बाहर निकालता है।
सेवन विधि:
1-2 ग्राम चूर्ण को शहद या गर्म पानी के साथ दिन में दो बार लें।
5. धनवंतरि वटी या संजीवनी:
ये वटीयाँ वात-पित्त-कफ दोषों को संतुलित कर रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती हैं।
सेवन विधि:
1-1 गोली सुबह-शाम गर्म पानी से लें।
🔹 घरेलू नुस्खे:
1. हल्दी दूध:
गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाकर रात को सोने से पहले सेवन करें। यह एंटीसेप्टिक और एंटीवायरल है।
2. अदरक का काढ़ा:
अदरक, काली मिर्च, तुलसी और गुड़ को उबालकर काढ़ा बनाएं और दिन में दो बार पिएं।
3. नींबू पानी और नारियल पानी:
बुखार में शरीर डिहाइड्रेट हो जाता है। नींबू पानी और नारियल पानी शरीर में जल की मात्रा को संतुलित रखते हैं।
🔹 क्या करें और क्या न करें:
✔️ क्या करें:
हल्का, सुपाच्य भोजन लें जैसे मूंग की दाल, खिचड़ी
पर्याप्त विश्राम करे!
गर्म पानी का सेवन करें
पसीना आने के बाद शरीर को साफ कपड़े से पोछें
❌ क्या न करें:
भारी, तला-भुना और मांसाहारी भोजन न लें
ठंडे पेय या आइसक्रीम से बचें
खुद से एलोपैथिक दवा न लें
नींद कम न करें
🔹 योग और प्राणायाम:
बुखार की अवस्था में ज़्यादा व्यायाम नहीं करना चाहिए, लेकिन निम्नलिखित हल्के प्राणायाम लाभकारी हो सकते हैं!
1. अनुलोम-विलोम प्राणायाम
2. भ्रामरी प्राणायाम
3. नाड़ी शोधन प्राणायाम
यह प्राणायाम मानसिक तनाव को कम करते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करते हैं।
🔹 कब डॉक्टर से मिलें:
यदि बुखार 102°F से ऊपर चला जाए
यदि बुखार 3 दिनों से अधिक समय तक बना रहे
यदि सांस लेने में कठिनाई हो
यदि बार-बार उल्टी या दस्त हो
निष्कर्ष:
बुखार शरीर की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जो रोगों से लड़ने के लिए होती है। आयुर्वेद में इसका उपचार शरीर के दोषों को संतुलित करने, पाचन सुधारने और प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाने पर आधारित होता है। यदि सही समय पर आयुर्वेदिक उपाय अपनाए जाएं तो बुखार बिना किसी दुष्प्रभाव के पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।
> अस्वीकरण: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी चिकित्सा उपचार से पहले योग्य आयुर्वेदाचार्य से परामर्श अवश्य लें।
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